फैट नहीं, फिर भी फैटी लिवर (No Fat Still Fatty Liver)
वजन ठीक और शराब से परहेज यानी स्वस्थ लिवर। (No Fat Still Fatty Liver) पर, बात इतनी सीधी नहीं है। आंकड़े कह रहे हैं कि देश में नॉन-एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। बड़े ही नहीं, बच्चों का लिवर भी निशाने पर है। माना जा रहा है कि 2030 तक फैटी लिवर, देश में लिवर की सबसे बड़ी बीमारी बन सकता है। कैसे अपना बचाव करें, प्राकृतिक चिकित्स्क पंकज रोहिल्ला
हालिया अध्ययनों के अनुसार, देश की लगभग 32% आबादी नॉन-एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज (एनएएफएलडी) से जूझ रही हैं। खासकर, मधुमेह रोगियों में इसकी मौजूदगी 55.5% से 59.7% तक पाई गई है। 16 फीसदी बच्चे भी फैटी लिवर की समस्या से पीड़ित हैं। आसान भाषा में एनएएफएलडी का मतलब है बिना शराब सेवन के भी लिवर में चुबर्बी जम जाना। माना जाता था कि केवल मोटे और शराब पीने वालों के लिवर में ही चर्बी जमती है। लेकिन, पिछले कुछ सालों में फैटी लिवर के मामले ऐसे लोगों में बढ़े हैं, जो न शराब पीते हैं और न ही मोटे हैं। समय रहते ध्यान न देने पर लिवर इंफ्लेमेशन, फाइब्रोसिस और सिरोसिस जैसे गंभीर रोगों का कारण बन सकती है।
लक्षण
■बिना ज्यादा काम किए लगातार थकावट महसूस होना
■पाचन संबंधी दिक्कतें जैसे गैस, एसिडिटी, कब्ज या डायरिया रहना
■पेट के दाईं तरफ नीचे दर्द महसूस होना
■बिना वजह वजन का कम या ज्यादा होना
■ब्रेन फॉगिंग, एकाग्रता में कमी
■हाथ व पैरों में सूजन या जलन रहना
■कौन से कारण हो सकते हैं जिम्मेदार
■ गलत खानपानः तेल-धी, तली-भुनी चीजें, प्रोसेस्ड फूड, जंक फूड, डिब्बा बंद जूस, चीनी, मैदा, कोल्ड ड्रिंक्स आदि का सेवन अधिक करना। इससे लिवर को फैट तोड़ने में दिक्कत होती है। उस पर दबाव बढ़ता है।
■मोटापा और बैली फैटः मोटापा और कमर के हिस्से में वसा एक बड़ी वजह है ही। पर, दुबले लोगों के लिवर में भी वसा जमा हो सकती है।
■ शारीरिक गतिविधियों की कमीः यह लिवर समेत कई समस्याओं का कारण है। खाना खाकर तुरंत सोना या देर रात तक खाना लिवर के लिए सही नहीं है।
■ मांसपेशियों की कमीः मसल्स कम और चर्बी ज्यादा यानी फैटी लिवर का खतरा।
■ खराब मेटाबॉलिज्मः कुछ लोगों का बीएमआई सामान्य होता है, पर धीमा मेटाबॉलिज्म होने से लिवर पर फैट जमा होने लगता है। चायरॉइड की समस्या होने से भी मेटाबॉलिज्म स्लो हो जाता है।
■हार्मोनल असंतुलनः अगर इंसुलिन सही से काम न करे तो शरीर ग्लुकोज को फैट में बदलकर लिवर में जमा कर देता है। महिलाओं में हार्मोनल समस्या भी फैटी लिवर का एक कारण है।
■कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्सः इनकी अधिकता भी दिल समेत लिवर पर असर डालती है।
■नींद की कमी और तनाव की अधिकताः देर रात सोने से शरीर को मरम्मत के लिए समय कम मिलता है। लिवर की सफाई ठीक से नहीं होती। ज्यादा तनाव से कॉर्टिसोल बढ़ता है, जो फैटी लिवर का खतरा बढ़ा देता है।
इसके अलावा दर्द निवारक दवाएं, एंटीबायोटिक्स, स्टेरॉइड और हार्मोन संबंधी दवाओं का सेवन, पोषक तत्वों की कमी व परिवार में फैटी लिवर भी एक कारण हैं।
बचाव के उपाय
जितना संभव होघर का बना, शुद्ध, हल्का और पौष्टिक जितना संभव हो घर का बना, शुद्ध, हलका और पौष्टिक से बचें। जंक फूड न खाएं। कोल्ड ड्रिंक्स की जगह नारियल पानी, फलों का जूस या नीबू पानी पिएं।
■मीठे व प्रोसेस्ड फूड से दूरी बनाएं। योग, व्यायाम व पैदल चलें। मोटापा न बढ़ने दें।
■तनाव प्रबंधन करें। जल्दी सोएं। सोने से पहले कुछ सुनें या पढ़ें। मेडिटेशन करें।
■नियमित हेल्थ चेकअप कराएं। इंसुलिन व ब्लड शुगर नियंत्रित रखें।
कब किस डॉक्टर के पास जाएं ?
गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्टः अगर लिवर एंजाइम बड़े हुए हैं या लिवर में सूजन है।
हेपेटोलॉजिस्टः सिरोसिस (लिवर का सिकुड़ना) की स्टेज पर इनसे मिलना चाहिए।
एंडोक्राइनोलॉजिस्टः डायबिटीज, सायरॉइड, इंसुलिन रेजिस्टेंस है, तो इनसे संपर्क करना चाहिए।
फैटी लिवर चार स्टेज में बढ़ता है
- सिंपल फैटी लिवर
इस स्तर पर सही खान-पान, व्यायाम और जीवनशैली सुधारने से 100% राहत मिल सकती है।
- नॉन एल्कोहॉलिक स्टेटोहैपेटाइटिस
इस स्तर पर लिवर में सूजन आ जाती है, लेकिन फिर भी सही आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट और आहार में सुधार कर इसे ठीक कर सकता है।
- फाइब्रोसिस (लिवर में स्कार टिशू बनने लगें)
इस स्तर पर लिवर के टिशू डैमेज होने लगते हैं, लेकिन, सही समय पर इलाज शुरू होने पर रोका जाना संभव है।
- सिरोसिस
इस स्तर पर लिवर रित्युकने लगता है और काम करना बंद कर सकता है। लिवर ट्रांसप्लांट इसका उपाय है। अगर शुरुआत में ही पहचान हो जाए तो यह पूरी तरह ठीक हो सकता है।
आयुर्वेद, नेचुरोपैथी या एलोपैथी?
यह बीमारी लिवर, मेटाबॉलिज्म और पाचन तंत्र से जुड़ी है, इसलिए उपचार के लिए कई दृष्टिकोण देखने को मिलते हैं-
एलोपैथिक ट्रीटमेंट फायदेः अगर लिवर एंजाइम बहुत बढ़े हुए हैं या लिवर में सूजन है, डायबिटीज-कोलेस्ट्रॉल जैसी समस्याएं हैं तो एलोपैथी तुरंत असर दिखा सकती है। नुकसानः दवाएं सिर्फ लक्षणों को काबू करती हैं, जड़ से बीमारी ठीक नहीं करतीं। लंबे समय तक दवाएं लेने से लिवर पर और दबाव आ सकता है।
आयुर्वेदिक उपचार फायदेः इसमें जड़ी-बूटियों और कुछ थेरेपियों (जैसे विरेचन और पंचकर्म) के साथ लिवर डिटॉक्स पर जोर देते हैं। शुरुआती स्टेज में बिना दवाओं से समस्या खत्म करना चाहते हैं तो इसे आजमा सकते हैं। नुकसानः असर धीरे होता है। गलत जड़ी-बूटियों का उपयोग नुकसान कर सकता है। अच्छे विशेषज्ञ से ही दवा लें।
नेचुरोपैथी फायदेः प्राकृतिक आहार व उपवास आदि कराए जाते हैं। हाइड्रोथेरेपी, सूर्य स्नान आदि थेरेपी का प्रयोग होता है। शुरुआती स्तर पर इस थेरेपी से लाभ मिलता है। कमियां: अगर बीमारी बढ़ चुकी है, तो अकेले नेचुरोपैथी पर्याप्त नहीं है। आहार का संथम भी रखना पड़ता है।
आंकड़ों के अनुसार, जीवनशैली में परिवर्तन करने से लिवर फैट में 10-30% तक की कमी देखी गई है। एलोपैथिक चिकित्सा में, एनएएफएलडी के लिए कोई विशेष दवा नहीं है। वहां भी मुख्यतः जीवनशैली में परिवर्तन पर ही फोकस किया जाता है। ऐसे में उपचार के दौरान एलोपैथी के साथ आयुर्वेद व नेचुरोपैथी को शामिल करना अच्छा रहेगा। दिशा आरोग्य धाम के विशेषज्ञः डॉ. पंकज रोहिल्ला, वरिष्ठ सलाहकार (नेचुरोपैथ), आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी (मेडिकल ऑफिसर)
** हम हैं…दिशा आरोग्य धाम भारत का सबसे किफायती आयुर्वेदा एवं प्राकृतिक चिकित्सालय **
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